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મારી તારી પ્રીત ના શમણાં
સવારે સમી જશે ;
ઓતરાદા વાયરા ની
ઉમ્ર શું બાકી ?
આહ ની ઘડીઓ તો
ગણી ગણાય
તેટલી જ રહી હવે ;
અષાઢ ની આ રાતે
મેહુલો પણ
મન મૂકી ને ક્યાં વરસે છે ?
ધરબાઇ ગયાં જળ કલેજાં માં ,
પણ
આંખ આંખ ને તરસે છે।
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Original Gujarati / 29 June 1977
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Hindi Transliteration / 21 June 2016
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सुबह होते ही
प्यार के सपने
उड़ जायेंगे
ईशान से जो आई हवा
उसकी उम्र क्या बाकी ?
और कितनी बची हैं वो आहें ?
अब तो
अंदाज़ के काबिल भी
न रही वो आहे !
क्यों रुक रुक कर
रो रही है बरखा ?
अगर रोना ही था तो ,
अश्क को
क्यों दिल में
छिपा रही हैं बरखा ?
तुम्हारी आँख से
हर एक
बूँद जो बरसी
मेरे कलेजे में
समाये जा रही हैं
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